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चरित्र निर्माण एवं व्यक्तिव के समग्र विकास की व्यवहारिक दृष्टि

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new education policy : Practical view of character building and overall development of person

जयपुर। खंडेलवाल वैश्य गल्र्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी वैशाली नगर जयपुर में शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास, प्रांत जयपुर तथा खंडेलवाल वैश्य गल्र्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी वैशाली नगर के संयुक्त तत्वाधान में “चरित्र निर्माण एवं व्यक्तित्व के समग्र विकास की व्यवहारिक दृष्टि ” विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय वेबीनार का आयोजन किया गया।

जिसमें एसकेवीईटी के अध्यक्ष सोहन लाल तांबी ने मुख्य अतिथि शिव प्रसाद, विशिष्ट अतिथि देशराज तथा उपस्थित सभी आगंतुकों का स्वागत करते हुए कहा कि वर्तमान शिक्षा पद्धति में बदलाव की आवश्यकता को महसूस करते हुए आज के इस वेबीनार आयोजन किया गया है आशा करते हैं यह वेबीनार सभी के लिए लाभदायक सिद्ध होगा।

कार्यक्रम में मुख्य अतिथि शिव प्रसाद ने कहा चरित्र निर्माण एवं व्यक्तित्व विकास शिक्षा का उदेश्य होता है। स्वामी विवेकानंद ने कहा की शिक्षा वही हे जो व्यक्ति के अंदर के सदभाव को बाहर लाती है। सभी महापुरूषो ने कहा है की यदि शिक्षा के बाद वह राष्ट्र को समर्पित नहीं है तो शिक्षा का कोई महत्व ही नहीं है। विवेकानंद ने बताया है की असली शिक्षा वह है जो रग रग मे बस जाये।

कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि देशराज ने चरित्र निर्माण हेतु व्यक्ति के समग्र विकास पर जोर देते हुए कहा कि जब तक व्यक्ति का पूर्ण विकास नहीं होगा तब तक उसके चरित्र का निर्माण होना भी असंभव नही है। व्यक्ति का समग्र विकास उचित शिक्षा के माध्यम से ही संभव है अतः ऐसी शिक्षा नीति का पालन करना चाहिए जिससे व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक तथा संपूर्ण व्यक्तित्व का विकास हो सके इस हेतु हमें वैदिक शिक्षा की ओर शिक्षाविदों का ध्यान आकर्षित करना होगा तभी व्यक्ति का विकास संभव है।

वेबीनार में अजय तिवार (कुलाधिपति स्वामी विवेकानंद विश्वविद्यालय,सागर उच ) ने शिक्षा के महत्व को समझाते हुए कहा कि शिक्षा का मूल लक्ष्य जीवन को आनंदमय बनाना है। मनुष्य की उत्पत्ति इस सृष्टि से हुई है ,सृष्टि का विकास ही मानव का समग्र विकास है। अतः मानव के विकास हेतु सृष्टि अर्थात पर्यावरण को बचाए रखना हमारा परम कर्तव्य है।

new education policy : Practical view of character building and overall development of person

शरीर के पांच तत्वों अर्थात पंचकोषों मे से अन्नमय कोष ,प्राणमय कोष, की जानकारी देते हुए बताया कि व्यक्ति के शरीर को अन्नमय कोष कहा गया है। हमारे शरीर का निर्माण अन्न द्वारा ही होता है इस अन्न कोष के सुचारू संचालन के लिए हमें संतुलित भोजन करना, प्रतिदिन व्यायाम करना एवं पर्याप्त निद्रा का सेवन करना चाहिए। ताकि हमारा अन्नकोष (शरीर) स्वस्थ रहे। हम जो श्वास लेते हैं वही प्राणवायु है। जिसे हमने कभी देखा नहीं है वह हमारा मन है अर्थात मनोमय कोष है। हमारी भीतर जो ज्ञान भरा है वह ज्ञानमय कोष है। हम जो सोचते है समझते है वह हमारा चित्त कोष है। अतः हमें हमारे शरीर की पवित्रता को बनाए रखना होगा ताकि हमारे आत्मबल में निरंतर वृद्धि होती रहे।
“ चरित्र निर्माण एवं व्यक्तित्व के समग्र विकास की व्यवहारिक दृष्टि”
कार्यक्रम में एसकेवीईटी के महामंत्री एम. एल. खंडेलवाल ने सभी को धन्यवाद देते हुए कहा कि आज के विषय “ चरित्र निर्माण एवं व्यक्तित्व के समग्र विकास की व्यवहारिक दृष्टि” को व्यवहारिक रूप देना आवश्यक है। आज की शिक्षा नीति में वैदिक शिक्षा नीति को शामिल किया जाना चाहिए ताकि नागरिको के उत्तमचरित्र का निर्माण किया जा सके।

वैदिक शिक्षा और गीता की शिक्षा को पाठ्यक्रम में शामिल करने का आग्रह किया और कहा कि आशा करता हूं आप सभी का प्रयास सफल रहे और इसका सकारात्मक परिणाम प्राप्त हो। एसकेवीईटी ट्रस्ट के भामाशाहो का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि केवीजीआईटी के निर्माण में उनका जो सहयोग रहा है उसके लिए तहे दिल से हम सभी उनके आभारी हैं।

दुर्गा प्रसाद अग्रवाल ने कहा कि शिक्षा व्यवस्था में विद्या और अविद्या दोनों ही महत्वपूर्ण होती है। विद्या मनुष्य का निर्माण करने वाली और मानवता को उच्च शिखर पर ले जाने वाली होती है। जबकि अविद्या किसी का गुलाम या नौकर बना देती है। आपने व्यक्ति के समग्र विकास का समर्थन करते हुए कहा कि हमें शारीरिक विकास के लिए व्यायाम को जीवन में डालना होगा। प्रकृति और पर्यावरण से प्रेम करना होगा ।
नई शिक्षा नीति में परिवर्तन को लेकर हुई आज की चर्चा हमारे आर्थिक और सामाजिक विकास मैं परिवर्तन लाए, इस विषय पर हमें चिंतन और मनन करना होगा। आज के इस ज्ञानवर्धक व्याख्यान से हमारे जीवन में परिवर्तन संभव है। आपने सभी अतिथियों एवं आयोजकों तथा उपस्थित सभी आगंतुकों का धन्यवाद किया।

केवीजीआईटी महाविद्यालय की प्राचार्या डॉ. अंजु गुप्ता ने उपस्थित सभी लोगों का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि शिक्षा की गुणवत्ता को बनाए रखना तथा बालिका शिक्षा को बढ़ावा देना आज की मूलभूत आवश्यकता है।
उन्होने बताया कि बालिका शिक्षा हेतु एसकेवीईटी ट्रस्ट द्वारा छात्राओं को विभिन्न प्रकार की छात्रवृत्ति प्रदान की जाती है।
नितिन कासलीवाल द्वारा कार्यक्रम का सफल संचालन करते हुए सभी का धन्यवाद किया गया।

चरित्र निर्माण एवं व्यक्तिव के समग्र विकास की व्यवहारिक दृष्टि
द्वितीय दिवस सत्र

खंडेलवाल वैश्य गल्र्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी वैशाली नगर तथा “ शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास” जयपुर के संयुक्त तत्वाधान में चरित्र निर्माण एवं व्यक्तित्व के समग्र विकास की व्यवहारिक दृष्टि पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय वेबीनार के दूसरे दिन का आरंभ सरस्वती वंदना से हुआ।
ट्रस्ट के महामंत्री मदन लाल खंडेलवाल ने मुख्य अतिथि शैलेंद्र का स्वागत करते हुए कहा कि शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास शिक्षा के उत्थान हेतु जो प्रयास कर रहा है उसमें महाविद्यालय का छोटा सा सहयोग महाविद्यालय के लिए लिए गर्व की बात है। इस प्रकार की कार्य शालाओं में ज्ञान तो बहुत बांटा जाता है लेकिन हमें इसके सार्थक उपयोग को सुनिश्चित करना होगा तभी हमारे इस प्रकार के आयोजनों की सार्थकता सिद्ध होगी ।
ट्रस्ट के मंत्री मुरारी लाल गुप्ता ने बताया की इन कार्यशालाओ के माध्यम से आज की युवा पीढ़ी को शिक्षा के जिन विषयो से अवगत कराया जा रहा हे वो इनके लिए बहुत जी महत्वपूर्ण व उपयोगी सिद्ध होगा और इसके पीछे संस्था का जो उदेश्य है वो उसमे अवश्य ही सफल होंगे।
कार्यशाला के तृतीय सत्र के मुख्य वक्ता डॉ. अमित शास्त्री (संस्थापक एवं निदेशक आर्यभट्ट ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूट , अजमेर) रहे।
मनोमय कोश एवं विज्ञन्मयकोश पर प्रकाश डालते हुए बताया कि हमारी कर्मेंद्रियां मनोमय कोष का हिस्सा होती है तथा ध्वनि हमारे मन पर सबसे अधिक प्रभाव डालती है। मन का सबसे बड़ा चरित्र द्वंदात्मक है। मन बड़ा चंचल और चलायमान होता है,स्थिर रहना मन का स्वभाव नहीं है, वह अलग-अलग विषयों में भटकता रहता है। दया अनुकंपा सहानुभूति आदि सब प्रत्येक मन में विद्यमान रहते हैं।
मनोमय कोश शरीर और बुद्धि के बीच की स्थिति है। मनोमय कोष के विकास के विभिन्न कारक जैसेरू संगीत, भोजन, स्वाध्याय और सत्संग तथा सेवा कार्य आदि के बारे में ज्ञानवर्धक जानकारी दी जिसका सभी ने लाभार्जन किया।
कार्यशाला के चतुर्थ सत्र के मुख्य वक्ता अशोक कड़ेल (सेवानिवृत्त प्राचार्य ,सीनियर सेकेंडरी स्कूल एवं ैैन्छ के मध्य क्षेत्र के क्षेत्र संयोजक) रहे। आज के विषय आनंदमय कोश पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि आनंदमय कोश का अभिप्राय आत्मा का दर्शन करना है। व्यक्ति की दो यात्राएं होती है बाह्य यात्रा एवं आंतरिक यात्रा। बाह्य यात्रा जो कि व्यक्ति के जन्म से लेकर मृत्यु तक संपन्न होती है, तथा आंतरिक यात्रा व्यक्ति को वास्तविक आनंद की प्राप्ति कराती है। मनुष्य सदैव बाह्य आकर्षण की तरफ आकर्षित होता है उसे भीतर की शक्तियों के बारे में जानकारी ही नहीं होती है,उन शक्तियों की तरफ उनका ध्यान ही नहीं जाता है, इन भीतरी शक्तियों को बाहर लाना, उन्हें पहचानना ही आनंदमय कोष है।
ज्ञान प्रत्येक व्यक्ति के भीतर होता है उसे बाहर लाने का प्रयास करना, आत्मा के ऊपर चढ़े विभिन्न आवरणो को हटाकर आत्मा का दर्शन कराना ही आनंदमय कोश है। मन का विकास करना मनोमय कोश है। बुद्धि का विकास करना विज्ञन्मयकोश है। आनंद के दो रूप होते हैं लौकिक और अलौकिक। आनंदमय कोश अलौकिक है इसे आध्यात्मिक तत्व भी कहते हैं। आनंदमय कोश तक पहुंचने के लिए अभ्यास और प्रयास करना आवश्यक है। शरीर में प्राण, मन, बुद्धि और आत्मा यह सभी संयुक्त रूप से निवास करते हैं। मृत्यु के समय स्थूल शरीर अग्नि या भूमि को समर्पित हो जाता हैं लेकिन हमारी आत्मा उस परम तत्व में विलीन हो जाती है जहां से हमारी उत्पत्ति होती है या वह दूसरा शरीर धारण कर लेती है।
व्यक्ति के भीतर छिपे आनंद को पहचानना ही अध्यात्म है। जिसके द्वारा विद्यार्थियों का विकास किया जा सकता है। अध्यात्मिक विकास के दर्शन विद्यार्थियों को कराना ही आनंदमय कोष है।
कार्यशाला के मुख्य अतिथि डॉ. शैलेंद्र ने कहा कि भारत की संस्कृति पूरे विश्व को बचा सकती है क्योंकि भारत की संस्कृति विश्व की सबसे प्राचीन संस्कृति है। भारत के महापुरुषों ने अपने जीवन को आदर्श रूप में प्रस्तुत किया है ताकि व्यक्ति ,परिवार ,राष्ट्र सभी सुख शांति से अपना जीवन यापन उन आदर्शों पर चलकर कर सकें। चरित्र के महत्व के बारे में बताते हुए कहा कि धन का पतन होने से उसे पुनः प्राप्त किया जा सकता है, लेकिन यदि चरित्र का पतन एक बार हो जाए तो उसे पुनः प्राप्त करना कठिन ही नहीं नामुमकिन होता है। चरित्र के दो प्रकार बताएं सच्चरित्र और दुष्चरित्र। व्यक्ति का समग्र विकास अर्थात शारीरिक, भौतिक, बौद्धिक और मानसिक विकास ही उनके समग्र व्यक्तित्व का विकास है। यदि एक बालक को घर में स्नेह, प्रेम, वात्सल्य नहीं प्राप्त होगा तो उसके उत्तम चरित्र का निर्माण नहीं हो सकता है । चरित्र निर्माण के विभिन्न संस्मरणो द्वारा यह समझाया उत्तम चरित्र वाले व्यक्तियों से हम किस प्रकार प्रेरणा प्राप्त कर सकते हैं।

कार्यशाला के अंत मे केवीजीआईटी महाविद्यालय की प्राचार्या डॉ. अंजु गुप्ता द्वारा आमंत्रित सभी अतिथियों का तहे दिल से आभार व्यक्त किया गया और कहा कि हम आशा करते है कि भविष्य में भी इसी तरह से आपके ज्ञानवर्धक व्याख्यानों से छात्राओं का मार्गदर्शन होता रहेगा।

वेबीनार में मुख्य अतिथि शिव प्रसाद (संगठन मंत्री,विद्या भारती, राजस्थान), विशिष्ट अतिथि देशराज (राष्ट्रीय संयोजक, चरित्र निर्माण एवं व्यक्तित्व विकास शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास), अध्यक्ष सोहन लाल तांबी (अध्यक्ष, श्रीखंडेलवाल वैश्य एजुकेशन ट्रस्ट जयपुर) उपस्थित रहे।
कार्यक्रम के आयोजक नितिन कासलीवाल (प्रांत संयोजक जयपुर ), दुर्गा प्रसाद अग्रवाल (क्षेत्र संरक्षक,राजस्थान ), मदन लाल खंडेलवाल (महामंत्री एसकेवीईटी) तथा डॉ. अंजु गुप्ता( प्राचार्या केवीजीआईटी) रहे।

दूसरे दिन की कार्यशाला में, मुख्य अतिथि शैलेंद्र (जयपुर प्रांत प्रचार राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ), विशिष्ट अतिथि अशोक कड़ेल ( सेवानिवृत्त प्राचार्य ,सीनियर सेकेंडरी स्कूल एवं के मध्य क्षेत्र के क्षेत्र संयोजक), अध्यक्ष एम. एल. खंडेलवाल (महामंत्री एसकेवीईटी) मुरारी लाल गुप्ता (मंत्री एसकेवीटी) , सत्र के वक्ता डॉ. अमित शास्त्री (न्यास के चित्तौड़ प्रांत सहसंयोजक व संस्थापक एवं निदेशक आर्यभट्ट ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूट , अजमेर) दुर्गा प्रसाद अग्रवाल तथा डॉ. अंजु गुप्ता (प्राचार्या केवीजीआईटी महाविद्यालय) उपस्थित रहे ।

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